रविवार, मई 08, 2005

नवगीत

उमस का गाँव

लू की नदी किनारे पर है
एक उमस का गाँव ।।
पानी का अभाव जैसे
सच्चाई का व्यवहार
स्वेद बहुत सस्ता जैसे
हो रिश्वत का बाजार
सभी कह रहे बालू में ही
खींचो अपनी नाव ।।
कुएँ हुए अंधे जैसे हों
चौपालों का न्याय
अन्धड़ जैसे चले गाँव में
मुखिया जी की राय
पवन कि जैसे भोले–भालों
का न कहीं पर ठाँव ।
लू की नदी किनारे पर है
एक उमस का गाँव ।।
***


कामना की रेत

जून की तपती किरन–सा
मन
आहटों से भी उफनता
मिल रहा संकेत
भुंज रही है भाड़–सी
उर–कामना की रेत
ज्यों दुपहरी भर रखा हो धूप में
बर्तन
फूल पत्तों को न बाँटे आ रहा
जो दे रहा है मूल
साहसी छाता तना है शीश पर
लेकिन फिजूल
आँसती है साँझ को भी धूप की
खुरचन ।
***
-गिरिमोहन गुरु